"सिलसिला लफ़्ज़ों का" नामक किताब में लेखिका ने विभिन्न मुद्दों पर कविता पिरोने की कोशिश की है , जैसे मोहब्बत के मायने , उससे उम्मीद , कभी बेवफाई , कभी ममतामयी मां , रात का बंजारापन , राधा का दर्द , आज़ादी के सही मायने, गांव-शहर के भेद , बचपन की दिवाली , तो कभी सामाजिक मुद्दा जैसे - किसान , ग़रीबी, दरिंदगी , बेटी विवाह , नए ख़्याल की लड़की , उनके सोच विचार को उकेड़ने की कोशिश की है । लेखिका ने छात्र जीवन पर शिक्षक का प्रभाव तो कभी उनके मृत्यु वियोग को भी शब्दों में ढाला है ।
लेखिका का परिचय
आर्यभट्ट और शाही लीची की बगान की भूमि बिहार( मुज़फ़्फ़रपुर ) में दिक्षा कौशिक जन्मी है । वह सादगी , अनुशासित और खिलखिलाती हसीं की धनी है । उन्होंने अपने माता-पिता , प्रमिला कुमारी व संजय कुमार तथा उनकी ज़िंदगी की यशोदा तथा नंद , रागिनी कुमारी व रमेश कुमार का अविरल स्नेह और अमृतछाया पाया है । वह रामबृक्ष बेनीपुरी महिला महाविद्यालय की छात्रा है । उन्होंने कई एंथोलॉजी भी लिखा है तथा उनकी रचना अमर उजाला , समय टुडे जैसे अख़बार में प्रकाशित हो चुकी है । उन्हें अल्लामा इक़बाल की शायरी जीवन का मूल मंत्र लगता है -
ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले
ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है
सिलसिला लफ़्ज़ों का (Silsila Lafzo Ka)
Diksha Kaushik