दूनियाँ की परिधि समिति है समाज, बन्धिशे,कलंक, अफवाह, इत्यादि ,अक्सर सभी कहते है कि दूनियाँ प्रेम से चलती है इस सृष्टि को प्रेम से ही चलाया जा सकता है । लेकिन जब बात प्रेम - विवाह कि आती है तो यह बन्धन, रीति-रिवाजों, जातिवाद सब आ जाते है बीच मे और प्रेम रह जाता है बस नाम का उस वक्त कोई यह नही कहता है कि बात प्यार की है या सब शान्ति से सुलझा दिया जाये।
उस वक्त नजर आती है प्रतिष्ठा,मान_सम्मान और स्वाभिमान और यह भी सब लिखे गये है लड़कीयो के हिस्से अब इन्हे कोई यह नही समझा सकता की उस लड़की ने प्रेम एक लड़के से ही किया है वो किसी लड़के के साथ सम्बन्ध बनाकर ही बिन ब्याही माँ बनी है । लेकिन नजर आती है सिर्फ वो बेबस लड़की जिसपे समाज,रिश्तेदार चाहे कुछ भी बोल दे वो खामोशी से सुन लेगी और पी जायेगी एक युद्ध की त्रासदी जैसा अपमान का घुट अब सोचने की बात यह है, कि जब हम प्रेम को स्वीकार नही कर सकते । उसे समाज से,दूनियादारी से ऊपर नही रख सकते तो फिर प्रेम जैसे पवित्र शब्द का खोखला गुणगान करना व्यर्थ है।
राधाकृष्णन,हीर_राँझा,रोमियो_जुलियट ऐसी न जाने कितनी ही अमर प्रेम कहानियाँ हुई है मगर यह सब रही है अधुरी आखिर क्यो? इसका सीधा सा जवाब है "हम सब " जब हम किसी बात को मान नही सकते उसका साथ नही दे सकते तो फिर हम दुसरो को यह क्यो कहते है कि ऐसा होने दो या यह हो जाने दो माना कि प्रेम मे कुछ सीमाएँ निश्चित की जाती है । लेकिन प्रेम को अस्वीकार करना यह तो गलत है हमारा समाज सिर्फ आधुनिक होने का दिखावा करता है।
तेरी आराध्या
Anita Rohlan