नमस्कार! इन कविताओं में लेखक ने अपने भावों को शब्दों में बंधने का प्रयास किया है। यदि आप स्वयं को इन भावों से जोड़कर कविताओं को पढ़ेंगे तो निश्चय ही वही अनुभव कर पाएंगे जो लेखक ने लिखते समय किया था। अनुभव कहता है कि व्यक्ति तभी लिखना आरंभ करता है जब उसको सुनने वाला कोई न हो। कागज और कलम व्यक्ति के निजी मित्र होते हैं जो हर वक्त सुनने को तैयार रहते हैं। वो किसी भी पूर्वाग्रह के बिना लेखक को सुनते हैं। अपने मन की हर बात पन्नों को बताई जा सकती है। परंतु कागज तुरंत पलटकर जवाब नहीं देते, वो लेखक को खुद ही जवाब ढूंढने के लिए उत्साहित करते हैं। इस तरह एक लेखक कविताएं, नाटक या कहानियां नहीं लिखता, बल्कि पन्नों में अपने आप से बातें करता है और ख़ुद से बातें करते करते उसे है दूसरों के मनोभाव भी समझ में आने लगते हैं। इस किताब के पन्नों में भी लेखक की स्वयं से की हुई बातें लिखी हैं। इन भावनाओं ने ही लेखक को लेखक बनाया है।कई बार हम अनुभव करते हैं 'जीवन में सिर्फ निराशा ही निराशा है' कभी ऐसा लगता है 'हम सब कुछ कर सकते हैं', कभी जीवन प्रेम से भरा होता है, कभी दुःख के काले बादल मंडराए रहते हैं। लेखक ने इन सभी भावों को कुछ पंक्तियों के माध्यम से आपके समक्ष प्रस्तुत किया है। आशा करते हैं कि आप भी पढ़ते वक्त इन भावों को महसूस कर पाएंगे।
धन्यवाद।
विक्रम बैनीवाल 'शिवांश’
भावों के भंवर में: यादों की लहरें
विक्रम बैनीवाल