बदलते दौर के साथ मीम के इस जमाने में कविताओं और साहित्य से प्रेम करने वाले लोग यद्धपि अब कम ही दिखते हैं परन्तु इस चिंता को ना करते हुए की साहित्य रुचिवन्तों की अब कमी है, मैंने जो कुछ भी अबतक साहित्य का अध्ययन किया है; उसके आधार पर मैंने कुछ कविताओं को लिखा है । इस पुस्तक में मेरे द्वारा जो विगत डेढ़ वर्ष में कविताएं लिखी गई हैं उनका संकलन है । इन कविताओं में एक कविता "द्वंद" जो एक बड़ी रचना है; वही इस पुस्तक का प्रतिपाद्य केंद्र बिंदु है और उसी आधार पर इस पुस्तक का नाम निश्चित किया गया है अतः द्वंद नाम क्यों रखा है इसबात से आपका यह अज्ञान दूर हो जाना चाहिए ; अब उसमें किसका, और क्या द्वंद्व है वह आपको पढ़कर ही ज्ञात होगा । उस काव्य में मेरे व्यक्तिगत विचारों का समावेश है; अतः सभी से निवेदन है कि इसे धार्मिक अथवा राजनैतिक मुद्दा न बनाएं बल्कि चिंतन की दृष्टि से पढ़ें।
यद्धपि श्रृंगार रस, रसों में शामिल है तथापि मैंने उसमें लिखना उतना उचित नहीं समझा है । क्योंकि मेरा व्यक्तिगत विचार है कि वर्तमान में श्रृंगार से अधिक अन्य विषयों पर कलम चलाने की आवश्यकता संसार में है। इन कविताओं में आपको श्रृंगारिक वर्णन से परे देश, समाज, परिवार और मनुष्य जीवन
आदि विषयों पर विवेचन देखने को मिलेगा; आशा करता हूँ कि वह आपको पसंद आएगा।
द्वंद्व
Arvind Jain Shashtri